पंथ है प्रशस्त शूर साहसी बढ़े चलो ।।धृ०।।
निशा अशेष हो रही प्रभात मुस्करा रहा
हिमाद्रि तुंग-श्रंग से प्रयाण-गान आ रहा
वर -विभूति विश्व को बुला रही बढ़े चलो ॥१॥
मार्ग है वही प्रवीर है वही वसुन्धरा
प्राण मातृ-भूमि हेतु शौर्य है वहीं भरा।
माँ वहीं बुला रही बढ़े चलो बढ़े चलो ॥२॥
अन्तरिक्षा काँपता देख वीर देश यह।
आज धन्य हो रहा पा तुम्हें स्वदेश यह।
सत्य -धर्म की विजय सदैव है बढ़े चलो ॥३॥
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