Saturday, June 27, 2020

१०० . दिव्य साधना राष्ट्रदेव की खिले सुगंधित हृदय सुमन

१०० . दिव्य साधना राष्ट्रदेव की खिले सुगंधित हृदय सुमन

दिव्य साधना राष्ट्रदेव की खिले सुगंधित हृदय सुमन 
ध्येय एक ही मॉ भारत की गूंजे जय-जय विश्व गगन ||धृ ० ||

शाखा रूपी नूतन मंदिर धन्य-धन्य अपना जीवन 
एकनिष्ठ हो ढाल रहा है शुभ संस्कारित तन और मन 
स्नेहमयी अनुपम तप धारा ज्ञान सुधा पा सभी मगन ||१ ||

कहां थे साधन कहां थी सुविधा संकट में भी सदा बढे 
संकल्पित मन, कर्म, तपस्या, से ही साधक शिखर चढे 
स्वाभिमान से विचरें जग में देख सभी में अपनापन  ||२ ||

नये-नये शुभ परिवर्तन को अंतर्मन से स्वीकारें 
कैसी भी हो कठीण चुनौती हिम्मत अपनी ना हारे 
हमने वह क्षमता पायी है वैभव स्वयं करे वंदन ||३ ||

अटल अडिग हे निश्चय अपना ध्येय सुपथ ना छोडेंगे 
नवयुग के हम बने भगीरथ गंगाधर भी मोडेंगे 
मंगलमय सुंदर रचना हो रात दिवस बस यही लगन ||३ ||


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