आज तन मन और जीवन धन सभी कुछ हो समर्पण
राष्ट्र्हित की साधना में, हम करें सर्वस्व अर्पण ।।धृ ।।
राष्ट्र्हित की साधना में, हम करें सर्वस्व अर्पण ।।धृ ।।
त्यागकर हम शेष जीवन की सुसंचित कामनायें
ध्येय के अनुरूप जीवन, हम सभी अपना बनायें
पूर्ण विकसित शुध्द जीवन-पुष्प से हो राष्ट्र् अर्चन ।।१।।
यज्ञ हित हो पूर्ण आहुति, व्यक्तिगत संसार स्वाहा
देश के कल्याण में हो, अतुल धन भंडार स्वाहा
कर सके विचलित न किंचित मोहके ये कठिन बंधन ।।२।।
हो रहा आह्वान तो फिर, कौन असमंजस हमें है
उच्चतम आदर्श पावन प्राप्त युग युग से हमें है
हम ग्रहण कर लें पुन: वह त्यागमय परिपूर्ण जीवन ।।३।।
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