अनेकता में ऐक्य मंत्र को, जन-जन फिर अपनाता है।
धीरे-धीरे देश हमारा, आगे बढता जाता है।।धृ०।।
धीरे-धीरे देश हमारा, आगे बढता जाता है।।धृ०।।
इस धरती को स्वर्ग बनाया, ॠषियों ने देकर बलिदान॥
उन्हीं के वंशज आज चले फिर, करने को इसका निर्माण।
कर्म पंथ पर आज सभी को गीता ग्यान बुलाता है॥१॥
जाति, प्रान्त और वर्ग भेद के, भ्रम को दूर भगाना है।
भूख, बीमारी और बेकारी, इनको आज मिटाना है।
एक देश का भाव जगा दें, सबकी भारत माता है॥२॥
हमें किसी से बैर नहीं है, हमें किसी से भीति नहीं।
सभी से मिलकर काम करेंगे, संगठना की रीति यही।
नील गगन में भगवा ध्वज यह, लहर लहर लहराता है॥३॥
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