लो श्रद्घांजलि राष्ट्र-पुरुष शतकोटी ह्र्दय के कंज खिले है।
आज तुम्हारी पूजा करने सेतु हिमाचल संग मिले है ॥धृ ०।।
माँ के पद-पद्मो में तुमने जो अमूल्य उपहार रखा है
सत्य चिरन्तन अक्षय है हिन्दू की अमिट रुपरेखा है
पावन संस्कारों ने निर्मित तन-मन ये अनभेद्य किले है ॥१॥
तुमने किया व्यतीत कठिनतम लोक-प्रसिद्धी पराङ्मुख जीवन
भीष्म समान रहे तुम अविचल हिन्दु राष्ट्र के हित आजीवन
देव तुम्हारी घोर तपस्या के ही तो ये सुफल मिले हैं ॥२॥
तुम अजात-अरि लोक-संग्रही संघ शक्ति के वलयकोण थे
देव बता दो प्रतिपक्षी भी क्यों इतने संतुष्ट मौन थे
सुनकर पावन चरित तुम्हारा कोटि हृदय प्रस्तर पिघले हैं ॥३॥
आज तुम्हारी पार्थिव प्रतिमा चर्म चक्षुओं से अदृश्य है
किन्तु कोटि उर निलयों में तब दिव्य मूर्ति रहती अजस्त्र है
तेजोमय प्रतिबिम्ब तुम्हारे स्वयं सिद्घ अगणित निकले है ॥४॥
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