विश्व गगन पर फिर से गूंजे, भारत माँ की जय जय जय l
बढ़ते जायें हो निर्भय, बढ़ते जायें हो निर्भय ll धृ०||
कालजयी है चिन्तन अपना, सभी सुखी हों एक ही सपना
जगती है परिवार हमारा, चमके अपना शीलविनय ll १||
अपनी शक्ति को प्रकटाये, स्नेहामृत पल-पल छलकाएं
भेद अभावो को हरना है, मंगल में नव अरुणोदय ।। २ ||
सृष्टि की समझे रचनाएं, सम्यक विकास पथ अपनाएं
वायु जल भूमि तत्वों को, सदा रखेंगे तेजोमय ।। ३ ||
जीवनवृत्त यह चले अखंडित, तन मन धन सर्वस्व समर्पित
जगतगुरु सिंहासन सोहे, गौरव महिमा हो अक्षय ।। ४ ||
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