Sunday, June 28, 2020

१०८ . मुक्ती का मंत्र दो आत्मा स्वतंत्र हो

१०८ . मुक्ती का मंत्र दो आत्मा स्वतंत्र हो 

मुक्ती का मंत्र दो, आत्मा स्वतंत्र हो 
सत्य बोलने से हम रुके नहीं 
साथी हम न्याय के, आगे अन्याय के 
आर्य बालकों के सर झुके नहीं ।।धृ०।।

तुम सबके पालक, हम तेरे बालक 
भूले हमारी स्वीकार लो 
गंगा का निर्मल, हमें जीवन और 
हिमालय से ऊँचे विचार दो 
पथ जो उजाड़ हो, ऊँचे पहाड़ हो 
हिम्मत के पग ये थके नहीं ।।१।।

हे प्राणदाता जग के विधाता 
धरती के धीरज का धर्म दो 
जनजन में जीवन जागृत करे ऐसे 
योगी पवन का कर्म दो 
मन में विश्वास हो, फल की न आस हो 
ज्योति ये कर्म की बुझे नहीं ।।२।।


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