६५. चल तू अपनी राह पथिक चल
चल तू अपनी राह पथिक चल
होने दे होता है जो कुछ
उस होने का हो निर्णय क्या
तुझको तुझको तुझको
विजय पराजय से क्या ||धृ||
मेघ उमड़ते हैं - अम्बर में
भँवर उठ रहे है - सागर में
आँधी और तूफान डगर में
तुझको तो केवल चलाना है
चलना ही है तो फिर डर क्या । तुझको० ||१||
अरे थक गया क्यूँ - बढ़ता चल
उठ संघर्षोंसे - लड़ता चल
जीवन विजय पथ चलता चल
खड़ा हिमालय हो यदि आगे
चढु या लौटू यह संशय क्या । तुझको ||२||
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