Friday, June 26, 2020

९६ . जहाँ दिव्यता ही जीवन है

९६ . जहाँ दिव्यता ही जीवन है

जहाँ दिव्यता ही जीवन है
सागर का गांभीर्य जहाँ
जो कर्मो की फुलवारी है
नत-मस्तक है विश्व वहाँ ॥१॥

विपदाएँ कितनी आयी है
कितने ही आघात सहे
किन्तु अचल जो खड़ा हुआ है
वंदन शत-शत नरवर हे ॥२॥

जिसके मन में ध्येय देव का
निशिदिन चिंतन वंदन है
देशभक्ति का प्रकाश हँसता
जग को पंथ दिखाता है ॥३॥

जिसका स्मित चैतन्य पुरुष है
शब्द-शब्द नवदीप प्रखर
जिसकी कृति से भविष्य उज्ज्वल
उसको जग का वंदन है ॥४॥

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