जहाँ दिव्यता ही जीवन है
सागर का गांभीर्य जहाँ
जो कर्मो की फुलवारी है
नत-मस्तक है विश्व वहाँ ॥१॥
विपदाएँ कितनी आयी है
कितने ही आघात सहे
किन्तु अचल जो खड़ा हुआ है
वंदन शत-शत नरवर हे ॥२॥
जिसके मन में ध्येय देव का
निशिदिन चिंतन वंदन है
देशभक्ति का प्रकाश हँसता
जग को पंथ दिखाता है ॥३॥
जिसका स्मित चैतन्य पुरुष है
शब्द-शब्द नवदीप प्रखर
जिसकी कृति से भविष्य उज्ज्वल
उसको जग का वंदन है ॥४॥
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