जयघोष संस्कृति का, हम आज मिल करेंगे।
हम धर्म के पुजारी, जग को सुखी करेंगें।।धृ ० ||
विज्ञान के परों में, दे शक्ति संस्कृति की।
अध्यात्म नींव होगी, समृद्ध हिन्दु भू की।
हम विश्व के विभव की, व्याख्या नयी लिखेंगे ||१||
हम गर्व से कहेंगे, हिन्दुत्व प्राण अपना।
सहयत्न से हो पूरा,अपना महान सपना।
यह संघ शक्ति दैवी, हम साधना करेंगे ||२||
उलझे हुए हृदय का, फिर हास्य लौट आये।
भटके हुए पथिक को, सन्मार्ग फिर दिखाये।
सेवा स्वभाव अपना, हम नित्य ही स्मरेंगे ||३||
आकाश में निनादित, एकात्म स्वर हमारा।
वर्षों की साधना का, सार्थक प्रयत्न सारा।
है दृष्टि लक्ष्य पथ पर, विजयी चरण धरेंगें ||४||
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