संघ मंत्र के हे उद्गाता
अमिट हमारा तुमसे नाता ।।धृ ०।।
कोटि-कोटि नर नित्य मर रहे
जब जग के नश्वर वैभव पर
तब तुमने हमको सिखलाया
मर कर अमर बने कैसे नर
जिसे जन्म दे बनी सपूती
शस्य श्यामला भारत माता॥१॥
क्षण-क्षण तिल-तिल हँस- हँस जलकर
तुमने पैदा की जो ज्वाला
ग्राम -ग्राम में प्रान्त-प्रान्त में
दमक उठी दीपों की माला
हम किरणें हैं उसी तेज की
जो उस चिर जीवन से आता॥२॥
श्वास-श्वास से स्वार्थ त्याग की
तुमने पैदा की जो आँधी
वह न हिमालय से रुक सकती
सागर से ना जायेगी बाँधी
हम झोंके उस प्रबल पवन के
प्रलय स्वयं जिससे थर्राता॥३॥
कार्य चिरंतन तव अपना हम
ध्येय मार्ग पर बढ़ते जाते
पूर्ण करेंगे दिव्य साधना
संघ-मन्त्र मन में दोहराते
अखिल जगत में फहरायेंगे
हिन्दु-राष्ट्र की विमल पताका॥४॥
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