वन मे जाकर तप कर करके मोक्ष न हमको पाना है
हमको तो निज जन्मभूमि हित, जीना है, तर जाना है ||धृ ० ||
परमहंस है वही अनेको, बंधन में जो मुक्त रहे
आत्मानंद चखे हर क्षण जो, सदा तृप्त अलमस्त रहे
देश कार्य में दीवाना बन, ईश्वर धर्म निभाना है ||१||
भारतमा का विस्तृत तन ही, दुर्गा मां का दर्शन है
उसकी सेवारत सेवक ही, माँ का निर्भय वाहन है
वन घाटी पर्वत शृंगोपर, माँ का ध्वज फहराना है ||२||
जंगल पर्वत बसते हिंदू भाई सगे हमारे है
हमको इनके गुण प्यारे है, तो अवगुण भी प्यारे है
बडे प्रेम से अवगुण धोकर, गुण का कोष बढाना है ||३||
यह धरती है रामकृष्ण की, हनुमान बलवीर पले
शिव, गणपती, सुरनायक, दुर्गा जन्मे जिसकी छाह तले
कंकर कंकर को गढ गढ कर शंकर रूप बनाना है ||४||
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