Saturday, June 20, 2020

७० . वन मे जाकर तप कर करके

७० .  वन मे जाकर तप कर करके

वन मे जाकर तप कर करके मोक्ष न हमको पाना है 
हमको तो निज जन्मभूमि हित, जीना है, तर जाना है ||धृ ० ||

 परमहंस है वही अनेको, बंधन में जो मुक्त रहे 
आत्मानंद चखे हर क्षण जो, सदा तृप्त अलमस्त रहे
 देश कार्य में दीवाना बन, ईश्वर धर्म निभाना है ||१||

भारतमा का विस्तृत तन ही, दुर्गा मां का दर्शन है 
उसकी सेवारत सेवक ही, माँ का निर्भय वाहन है 
वन घाटी पर्वत शृंगोपर, माँ का ध्वज फहराना है ||२||

 जंगल पर्वत बसते हिंदू भाई सगे हमारे है 
हमको इनके गुण प्यारे है, तो अवगुण भी प्यारे है 
बडे प्रेम से अवगुण धोकर, गुण का कोष बढाना है ||३||

यह धरती है रामकृष्ण की, हनुमान बलवीर पले 
शिव, गणपती, सुरनायक, दुर्गा जन्मे जिसकी छाह तले 
कंकर कंकर को गढ गढ कर शंकर रूप बनाना है ||४||
 





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