Tuesday, July 14, 2020

१६२ . मन मस्त फ़कीरी धारी है

१६२ . मन मस्त फ़कीरी धारी है

मन मस्त फ़कीरी धारी है
अब एक ही धुन जय जय भारत ॥धृ०।।

हम धन्य है इस जगजननी की
सेवा का अवसर है पाया
इसकी माटी वायु जल से
दुर्लभ जीवन है विकसाया
यह पुष्प इसी के चरणोमे
माँ प्राणो से भी प्यारी है ॥१।।

सुन्दर सपने नव आकर्षण
सब तोड चले मुख मोड चले
वैभव महलों का क्या करना
सोते सुख से आकाश तले
साधन की ओर ना ताकेंगे
काँटों की राह हमारी है ॥२।।

ऋषियों मुनियों संतो का तप
अनमोल हमारी थाती है
बलदानी वीरो की गाथा
अपने रग रग लहराती है
गौरवमय नव इतीहास रचे
अब अपनी ही तो बारी है ॥३।।


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