Friday, July 10, 2020

१४६ . नवीन पर्व के लिए नवीन प्राण चाहीए

१४६ . नवीन पर्व के लिए नवीन प्राण चाहिए

नवीन पर्व के लिए नवीन प्राण चाहिए।|धृ०||

स्वतन्त्र देश हो गया प्रभुत्वमय दिशामही
निशा कराल टल चली स्वतन्त्र माँ विभामयी
मुक्त मातृभूमि को नवीन मान चाहिए॥१॥

चढ़ रहा निकेत है कि स्वर्ग छू गया सरल
दिशा-दिशा पुकारती कि साधना करो सफल
मुक्त गीत हो रहा नवीन राग चाहिए ॥२॥

युवकों कमर कसो कि कष्ट-कण्टकोंकी राह है
प्राण-दान का समय उमंग है उछाह है
पगों में आँधियाँ भरे प्रयाण-गान चाहिए ॥ ३॥

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