पथ का अन्तिम लक्ष्य नहीं है सिंहासन चढ़ते जाना।
सब समाज को लिये साथ में आगे है बढ़ते जाना ।। धृ०।।
इतना आगे इतना आगे जिसका कोई छोर नहीं
जहाँ पूर्णता मर्यादा हो सीमाओं की डोर नहीं
सभी दिशाएँ मिल जाती हैं उस अनन्त नभ को पाना॥१॥
छोटे-मोटे फल को पाने यह न परिश्रम सारा है
देवों को भी दुर्लभ है जो ऐसा संघ हमारा है
सफल राष्ट्र का अनुपम वैभव सभी भांति से है लाना॥२॥
वैभव तब ही सच्चा समझे सब सुख पाएँ लोक सभी
बाधाओं भय कुण्ठाओं से मुक्त धरा गत-शोक सभी
गुण की पूजा न्याय व्यवस्था निखिल विश्व में सरसाना॥३॥
इस महान उद्देश प्राप्ति हित लगे भले जीवन सारा
एक जन्म क्या बार -बार ही इसी हेतु जीवन -धारा
जियें इसी हित और मृत्यु को इसी हेतु है अपनाना॥४॥
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