युगों युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है
खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है ।।धृ०।।
इस धरती ने जनम दिया है यही पुनिता माता है
एक प्राण दो देह सरीखा इससे अपना नाता है
यह धरती है पार्वती माँ यही राष्ट्र शिवशंकर है
दिग्मण्डल सापों का कुण्डल कण कण रूद्र भयंकर है
यह पावन माटी ललाट की ललित ललाम ललाटी है ।।१।।
इसी भूमि पुत्री के कारण भस्म हुई लंका सारी
सुई नोंक भर भू के पीछे हुआ महाभारत भारी
पानी सा बह उठा लहू फिर पानीपत के प्रांगण में
बिछा दिए पुरियन के शव थे उसी तरायण के रण में
पृष्ठ बांचती इतिहासों के अब भी हल्दीघाटी है ।।२।।
सिक्ख मराठे राजपूत क्या बंगाली क्या मदरासी
इसी मंत्र का जाप कर रहे युग युग से भारतवासी
बुंदेले अब भी दुहराते यही मंत्र है झांसी में
देंगे प्राण न देंगे माटी गूंज रहा है नसनस में
शीश चढ़ाया काट गर्दनें या अरि गर्दन काटी है ।।३।।
इस धरती के कण कण में है चित्र खिंचा कुर्बानी का
एक एक कण छंद बोलता चढ़ी शहीद जवानी का
इसके कण है नहीं किन्ही ज्वालामुखियोंके शोले है
किया किसी ने दावा इनपर ये दावा से डोले है
इन्हें चाटने बढ़ा उसी ने धूल धरा की चाटी है ।।४।।
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