Wednesday, July 3, 2024

१८७ यारो संघ बडा बाका, बजाता भारत का डंका

 १८७  यारो संघ बडा बाका,  बजाता भारत का डंका


यारो संघ बडा बाका, बजाता भारत का डंका||धृ||


 सब मिल हिंदू इसमे आवे, बन जावे बलवान 

बंधू बंधू सब प्रेम करेंगे, कीजे एकदा गान ||१||


प्रतिदिन आना खेल खेलना, मिलना झुलना गाना

 इतना सीधा काम संघका, नलगे चांदी सोना ||२||


 हिंदू संघटन, संस्कृती रक्षण, अपना ध्येय महान

 यही हमारी जीद संघकी, तन मन उस परवान ||३||

Wednesday, June 12, 2024

१८६ स्वागत हे शिवराज तुम्हारा

 १८६  स्वागत हे शिवराज तुम्हारा


स्वागत हे शिवराज तुम्हारा

हिन्दु राष्ट्र के प्रखर शौर्य रवि

कोटि शीर्ष से तुम हो वन्दित।

कोटि बाहुबल से संपूजित

कोटि कन्ठ रव से आशीषित

युग-युग है तुम से उद्भासित

शस्त्र-शस्त्र का यह बल सारा ॥१॥


भूत भव्य भवितव्य विभव के

काल जयी हो तुम रथवाहक

भारत की आत्मा के भास्कर

साम स्वरों के तुम हो गायक

छिन्न भिन्न तेरी किरणों से

अंधकार की हो यह कारा ॥२॥


राष्ट्र शक्ति के उन्नायक हे

मुक्ति-मुक्ति के संधायक हे

धवल कीर्ति के अतुल तेज के

हिन्दु ह्रदय के अतुल तेज के

हिन्दु ह्रदय के राजेश्वर हे

स्रवती तेरे अमित शक्ति को

अविरल शत-शत निर्मल धारा ॥३॥


बरसाये आशीष देवगण

विजय श्री का करो वरण तुम

प्रेरक तत्त्व है तपः साधना

हिन्दु राष्ट्र को दे संजीवन

सदा तुम्हारे श्री चरणों में

अर्पित है सर्वस्व हमारा ॥ ४॥

१८५ हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना

 १८५   हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना


हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना।

हम जैसे रहते हैं , तुम भी रहो ना || धृ ० ||


बहती हुई नदियां देखो , कल-कल कल-कल बहती है ,

कल कल बहती है और , सागर में मिल जाती है।

नदियां यह कहती है , तुम भी मिलो ना ,

हम जैसे बहते हैं , तुम भी बहो ना

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || १ ||


पत्थर की मूरत देखो , पहले तो यह पत्थर थी ,

घावों को सहते–सहते , कष्टों को सहते–सहते, मूरत यह बन गई है |

मूरत यह कहती है , तुम भी बनो ना

हम जैसे सहते हैं , तुम भी सहो ना

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || २ ||


बागों के ये फुल देखो, खिल-खिल खिल-खिल खिलते  है |

धूप हो या छांव हो, सर्दी होया गर्मी हो |

हरदम मुस्कुराते हैं |

फुल ये कहते है तुम भी हसों ना |

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || ३ ||


जलता हुआ दीपक देखो , जगमग – जगमग करता है ,

स्वयम को जला कर , अंधेरा दूर करता है ,

दीपक यह कहता है , तुम भी जलो ना

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || ४ ||


Friday, April 26, 2024

१८४ . धर्म के लिये जिये समाज के लिये जिये

१८४ . धर्म के लिये जिये समाज के लिये जिये


धर्म के लिये जिये समाज के लिये जिये
ये धडकने ये श्वास हो पुण्यभूमी के लिये, कर्मभूमी के लिये ॥धृ०॥

गर्व से सभी कहे हिन्दु है हम एक है
जाति पंथ भिन्नता स्नेह सूत्र एक है
शुभ्र रंग की छटा सप्त रंग है लिये ॥१॥

कोटि कोटि कन्ठ से हिन्दु धर्म गर्जना
नित्य सिद्ध शक्ति से मातृभू की अर्चना
संघ शक्ति कलियुगे सुधा है धर्म के लिये ॥२॥

व्यक्ति व्यक्ति मे जगे समाज भक्ति भावना
व्यक्ति को समाज से जोडने की साधना
दाव पर सभी लगे धर्म कार्य के लिये ॥३॥

एक दिव्य ज्योति से असंख्य दीप जल रहे
कौन लौ बुझा सके आंधियो मे जो जले
तेजःपुंज हम बढे तमस चीरते हुए ॥४॥

१८३ . सूत्रपात नवयुग बेला का, संवाहक हम सभी बनें |

१८३ . सूत्रपात नवयुग बेला का, संवाहक हम सभी बनें | 


 सूत्रपात नवयुग बेला का, संवाहक हम सभी बनें | 

कठिन परिश्रम और लगन से, नवयुग की पहचान बनें    ||धृ०||


राष्ट्र प्रथम जीवन में अपने, हर मन का उद्देश रहे |

गौरव बढे देश का जिससे,  यह जन-मानस लक्ष्य रहे | 

नवयुग की इस नव-गंगा के, जल-कण पावन सभी बनें ||१||


उत्सुक सज्जन सुप्त शक्ति का, लाना होगा नवल प्रवाह |

संचित शक्ति अथाह हिंदू की, प्रकटे यह जन-जन की चाह |

सुदृढ हो विस्तार कार्य सब, गति देकर उत्थान करें ||२|| 


जागृति-श्रद्धा बढे धर्म में, शीलवान परिवार सभी | 

पर्यावरण प्रफुल्लित करके, समरसता की राह गही | 

शिष्टाचार, स्वदेशी अपने अधिष्ठान की आन बनें ||३||


पश्चिम के चिंतन से थककर, विश्व विवश भारत की ओर |

बढी राष्ट्र की शक्ति सनातन, उठा गगन में स्वर घनघोर |

चलो बढे अब कर्मक्षेत्र में, गुरुता के प्रतिमान बनें ||४||

Saturday, February 17, 2024

१८२ नदियां न पिये कभी अपना जल

नदियां न पिये कभी अपना जल,
वृक्ष न खाए कभी अपना फल 
अपने तन को मन को धन को
देश को दे दे दान रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ||धृ०||

चाहे मिले सोना चाँदी 
चाहे मिले रोटी बासी,
महल मिले बहु सुखकारी,
चाहे मिले कुटिया खाली
प्रेम और संतोष भाव से,
करता जो स्वीकार रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ||१||

चाहे करे निन्दा कोई 
चाहे कोई गुण गान करे,
फूलों से सत्कार करे
काँटों की चिन्ता न धरे
मान और अपमान ही दोनों
जिसके लिये समान रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ||२||

Saturday, January 27, 2024

१८१. कोटि कोटि हिंदू मिलकर, श्रीराम-नाम गुंजाते हैं

 १८१. कोटि कोटि हिंदू मिलकर, श्रीराम-नाम गुंजाते हैं


कोटि कोटि हिंदू मिलकर, श्रीराम-नाम गुंजाते हैं

सौगंध कभी जो खायी थी, वह पूर्ण किए हम जाते है 

हम मंदिर वही बनाते हैं || धृ ० ||


हर अंतर में श्रीराम-सिया, है लखन-भरत आचारों में

बल भक्ती का है संग लिए, हनुमान बसे घर-द्वारों में

श्रीरामकथा का घोष सदा, गूँजे आँगन-गलियारों में 

यह पुण्यधरोहर अमृत सी, छलके हर घर-परिवारों में  

हर गाँव अयोध्या सा बनकर, जन जन में राम समाते हैं ||१ ||


आक्रांता ने जो भ्रष्ट किया, वह क्षेत्र होत अब पावन है  

सदियों से जो बलिदान हुए, सब होत चले चिरसार्थक है 

फिर हिंदुशक्ति है जाग उठी, दानव बैठे अब डरकर है 

आए तैमुर-बाबर कोई, हम सिद्ध कमान उठाकर है

मंदिर राघव का रचकर हम, आदर्श वही दोहराते हैं ||२ ||