१८३ . सूत्रपात नवयुग बेला का, संवाहक हम सभी बनें |
सूत्रपात नवयुग बेला का, संवाहक हम सभी बनें |
कठिन परिश्रम और लगन से, नवयुग की पहचान बनें ||धृ०||
राष्ट्र प्रथम जीवन में अपने, हर मन का उद्देश रहे |
गौरव बढे देश का जिससे, यह जन-मानस लक्ष्य रहे |
नवयुग की इस नव-गंगा के, जल-कण पावन सभी बनें ||१||
उत्सुक सज्जन सुप्त शक्ति का, लाना होगा नवल प्रवाह |
संचित शक्ति अथाह हिंदू की, प्रकटे यह जन-जन की चाह |
सुदृढ हो विस्तार कार्य सब, गति देकर उत्थान करें ||२||
जागृति-श्रद्धा बढे धर्म में, शीलवान परिवार सभी |
पर्यावरण प्रफुल्लित करके, समरसता की राह गही |
शिष्टाचार, स्वदेशी अपने अधिष्ठान की आन बनें ||३||
पश्चिम के चिंतन से थककर, विश्व विवश भारत की ओर |
बढी राष्ट्र की शक्ति सनातन, उठा गगन में स्वर घनघोर |
चलो बढे अब कर्मक्षेत्र में, गुरुता के प्रतिमान बनें ||४||
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