१८४ . धर्म के लिये जिये समाज के लिये जिये
धर्म के लिये जिये समाज के लिये जिये
ये धडकने ये श्वास हो पुण्यभूमी के लिये, कर्मभूमी के लिये ॥धृ०॥
गर्व से सभी कहे हिन्दु है हम एक है
जाति पंथ भिन्नता स्नेह सूत्र एक है
शुभ्र रंग की छटा सप्त रंग है लिये ॥१॥
कोटि कोटि कन्ठ से हिन्दु धर्म गर्जना
नित्य सिद्ध शक्ति से मातृभू की अर्चना
संघ शक्ति कलियुगे सुधा है धर्म के लिये ॥२॥
व्यक्ति व्यक्ति मे जगे समाज भक्ति भावना
व्यक्ति को समाज से जोडने की साधना
दाव पर सभी लगे धर्म कार्य के लिये ॥३॥
एक दिव्य ज्योति से असंख्य दीप जल रहे
कौन लौ बुझा सके आंधियो मे जो जले
तेजःपुंज हम बढे तमस चीरते हुए ॥४॥
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