Wednesday, June 12, 2024

१८५ हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना

 १८५   हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना


हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना।

हम जैसे रहते हैं , तुम भी रहो ना || धृ ० ||


बहती हुई नदियां देखो , कल-कल कल-कल बहती है ,

कल कल बहती है और , सागर में मिल जाती है।

नदियां यह कहती है , तुम भी मिलो ना ,

हम जैसे बहते हैं , तुम भी बहो ना

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || १ ||


पत्थर की मूरत देखो , पहले तो यह पत्थर थी ,

घावों को सहते–सहते , कष्टों को सहते–सहते, मूरत यह बन गई है |

मूरत यह कहती है , तुम भी बनो ना

हम जैसे सहते हैं , तुम भी सहो ना

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || २ ||


बागों के ये फुल देखो, खिल-खिल खिल-खिल खिलते  है |

धूप हो या छांव हो, सर्दी होया गर्मी हो |

हरदम मुस्कुराते हैं |

फुल ये कहते है तुम भी हसों ना |

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || ३ ||


जलता हुआ दीपक देखो , जगमग – जगमग करता है ,

स्वयम को जला कर , अंधेरा दूर करता है ,

दीपक यह कहता है , तुम भी जलो ना

हम जैसे चलते हैं , तुम भी चलो ना || ४ ||


No comments:

Post a Comment