Friday, January 23, 2015

३ .निर्मल, पावन भावना, सभी के सुख की कामना

३ .  निर्मल पावन भावना 

निर्मल, पावन भावना, सभी के सुख की कामना 
गौरवमय समरस जन जीवन, यही राष्ट्र आराधना 
चले निरंतर साधना ॥ धृ ० ॥

जहाँ अशिक्षा, अंधकार है, वहाँ ज्ञान का दीप जलाएँ 
स्नेह भरी अनुपम शैली से, संस्कार की ज्योत जगाएँ 
सभी को लेकर साथ चलेंगे, दुर्बल का कर थामना ॥ १ ॥ 

जहाँ व्याधियों और अभावों - में मानवता तड़प रही 
घोर विकारों, अभिशापों में, देखो जगती झुलस रही
एक-एक आसूँ को पोंछे, सारी पीड़ा लांघना ॥ २ ॥

जहाँ विषमता भेद अभी है, नयी चेतना भरनी है 
न्यायपूर्ण मर्यादा धारे, विकास रचना करनी है 
स्वाभिमान से सभी खड़ें हो, करे न कोई याचना ॥ ३ ॥ 

नर-सेवा नारायण सेवा, है अपना कर्तव्य महान  
अपनी भक्ति अपनी शक्ति-से, हरना है जन-जन का त्राण 
अपने तप से प्रगटाएंगें, माँ भारत कमलासना ॥ ४ ॥  

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