Friday, January 23, 2015

१० . बलसागर भारत होवो, विश्वात शोभुनी राहो

१० .  बलसागर भारत होवो, विश्वात शोभुनी राहो ॥धृ ० ॥


हे कंकण करि बांधियले, जनसेवे जीवन दिधले
राष्ट्रार्थ प्राण हे उरले, मी सिद्ध मरायाला हो ॥ १ ॥

वैभवी देश चढवीन, सर्वस्व त्यास अर्पीन
तिमिर घोर संहारीन, या बंधु सहाय्याला हो ॥ २ ॥

हातात हात घेऊन, हृदयास हृदय जोडून
ऐक्याचा मंत्र जपून, या कार्य करायाला हो ॥ ३ ॥ 

करि दिव्य पताका घेऊ, प्रिय भारतगीते गाऊ
विश्वास पराक्रम दावू, ही माय निजपदा लाहो ॥ ४ ॥

या उठा करू हो शर्थ, संपादु दिव्य पुरुषार्थ
हे जीवन ना तरि व्यर्थ, भाग्यसूर्य तळपत राहो ॥ ५ ॥

ही माय थोर होईल, वैभवे दिव्य शोभेल
जगतास शांति देईल, तो सोन्याचा दिन येवो ॥ ६ ॥

 















११ . एकता स्वतन्त्रता समानता रहे

११ . एकता स्वतन्त्रता समानता रहे

एकता स्वतन्त्रता समानता रहे
देश मे चरित्र की महानता रहे॥धृ०॥

कण्ठ है करोडो, गीत एक राष्ट्र का
रंग है अनेक, चित्र एक राष्ट्र का
रूप है अनेक, भाव एक राष्ट्र का
शब्द है अनेक, अर्थ एक राष्ट्र का
चेतना समग्रता समानता रहे
देश मे चरित्र की महानता रहे॥१॥

विकास मे विवेक, स्वप्न एक राष्ट्र का
योजना अनेक, ध्यान एक राष्ट्र का
कर्म है अनेक, लक्ष्य एक राष्ट्र का
पंथ है अनेक, धर्म एक राष्ट्र का
सादगी सहिष्णुता समानता रहे
देश मे चरित्र की महानता रहे॥२॥

जाति है अनेक, रक्त एक राष्ट्र का
पंक्ति है अनेक, लेख एक राष्ट्र का
गांव है अनेक, अंग एक राष्ट्र का
किरण है अनेक, सूर्य एक राष्ट्र का
जागरण मनुष्यता समानता रहे
देश मे चरित्र की महानता रहे॥३॥

९ . भारतमाते म्हान देवते जागय तुजी सासाय

९ . भारतमाते म्हान देवते जागय तुजी सासाय

भारतमाते म्हान देवते जागय तुजी सासाय
आमका स्वदेशी जाय || धृ 0 ||

शक मुघलांनी डच आंग्लांनी लुटली आमची माय
तरातरांनी विद्रूप केली भांगराभुयची काय
परथुन एकदा परमवैभवा ह्या देशाक तू पाय || १ ||

गांधी गेनू सुटके जुझारी खादी चरखो चलय
विनायका तू लकडी पुलाचेर कपड्यां होळी खेळय
बाल केशवा मोखून मार गा व्हिक्टोरियाची मिठाय || २ ||

भायल्यो वस्तू रंगीत संगीत आसल्यो जरी सवाय
सगळे करता दाय जाल्यार रे आवय कित्याक ती जाय
हिंदू बंधुंच्या चिंतनाक येवदी देशभक्तीची साय || ३ || 

८ . श्री गुरु देवो जयतु माधवो राष्ट्र भक्ति योगी

८-  श्री गुरु देवो जयतु माधवो राष्ट्र भक्ति योगी 

श्री गुरु देवो जयतु माधवो राष्ट्र भक्ति योगी।
निवसतु ह्रदये विहरतु ह्रदये कोऽपि महायोगी |
जयतु संघ योगी ॥धृ०।।

भारत जननी पुण्य पावनी यस्यापरादेवता।
प्रदक्षिणामि रात्रिं दिवसं सततमाराधिता।
चिर प्रवासी मातृ दर्शने प्रेमी प्रखर विरागी॥१॥

स्मरणं मननं निदिध्यासनं संघ कार्य बंधूनाम
प्रिय बालानां नवयुवकानां प्रौढ़ानां स्थविराणाम्
संध्यावंदनमेतदविमरम् अहो ध्यान योगी॥२॥

सदा प्रसन्नम् विहसित वदनम् शुचि स्मृतं भाषणम्
स्नेह मधुरमवलोकनमनिशं यस्य मनो मोहनम्
दीन -विवासित बांधव करुणा जनसेवा योगी॥३॥

परमहंस इव धर्म -दर्शन महाप्रवचने स्वामी
संघटने श्री केशव इव यो धियो विश्वतोगामी
भगवद्ध्वज इव लोक वंदितो महा कर्मयोगी॥४॥

३ .निर्मल, पावन भावना, सभी के सुख की कामना

३ .  निर्मल पावन भावना 

निर्मल, पावन भावना, सभी के सुख की कामना 
गौरवमय समरस जन जीवन, यही राष्ट्र आराधना 
चले निरंतर साधना ॥ धृ ० ॥

जहाँ अशिक्षा, अंधकार है, वहाँ ज्ञान का दीप जलाएँ 
स्नेह भरी अनुपम शैली से, संस्कार की ज्योत जगाएँ 
सभी को लेकर साथ चलेंगे, दुर्बल का कर थामना ॥ १ ॥ 

जहाँ व्याधियों और अभावों - में मानवता तड़प रही 
घोर विकारों, अभिशापों में, देखो जगती झुलस रही
एक-एक आसूँ को पोंछे, सारी पीड़ा लांघना ॥ २ ॥

जहाँ विषमता भेद अभी है, नयी चेतना भरनी है 
न्यायपूर्ण मर्यादा धारे, विकास रचना करनी है 
स्वाभिमान से सभी खड़ें हो, करे न कोई याचना ॥ ३ ॥ 

नर-सेवा नारायण सेवा, है अपना कर्तव्य महान  
अपनी भक्ति अपनी शक्ति-से, हरना है जन-जन का त्राण 
अपने तप से प्रगटाएंगें, माँ भारत कमलासना ॥ ४ ॥  

६ . मनामनात जागवा मंत्र हा नवा

६ . मनामनात जागवा मंत्र हा नवा

मनामनात जागवा मंत्र हा नवा  
आपुला समाज नेऊ परमवैभवा ।। धृ ०।।

अंतरात मातृभूचि मूर्ति स्थापिली 
शक्ती, बुद्धि, संपदा तिलाच अर्पिली 
चित्तही तिचे, तिचीच कीर्ती मान्यता 
तिच्या सुखात सौख्य, वैभवात धन्यता 
संचरु जगी स्मरु तिचाच जोगवा ।।१।।

शक्ति, शील, ज्ञान, ध्येयनिष्ठ एकता
करु सजीव जीवनात त्याग बंधुता 
व्यक्ति व्यक्ति घडविणे मार्ग हा भला 
अढळ चालु या व्रतास आचरु चला  
संघ वाढवून राष्ट्रधर्म वाढवा ।।२।।

एक आस मार्ग हाच सतत चालणे 
धर्म रक्षुनी परस्परांस राखणे 
सत्य, न्याय, नीति, पंथ ईश राखती 
अंतस्थ होउनी जगास तारिती 
कृपेस त्या शिरी धरुन विजय मेळवा ।।३।।

उदो उदो आईचा त्रिभुवनी असो 
धुंदवीत दशदिशा मंत्र हा दिसो 
संघशक्ति प्रबळ ही प्रकट जाहली 
रक्षण्यास हिंदुधर्म सिद्ध जाहली 
शासण्या मदांधता विराट जागवा ।।४।।                     

७ . योधरे बयसीबन्नी शुभोदयके स्वागता

७ . योधरे बयसीबन्नी शुभोदयके स्वागता

योधरे बयसीबन्नी शुभोदयके स्वागता
स्वराष्ट्रता कास्यदल्ली सुप्रभात सृजीसुता ॥धृ॥

येळी-येळी बैलुहाळी सुखागमन् हेली दे
हेज्ज-हेज्ज भूस्वदेश तन्नमहिके तिलसी दे
हेज्जभूमी यागभूमी त्यागभूमी भारता ॥१॥

नदिसमूह मंत्र हाडी नित्य स्फूर्ती नीडि दे
जनर मनव नेलद कनव अदि पवित्र माडि दे
मातृभूमी पितृभूमी गुरुस्वरुपी भारता ॥२॥

अनादि रम्द साधुसंता वक्तरिल्ली वेरेदेस्यू
असंख्यवीरा शूरदिल्ली शक्तिरागी मेरेदेस्यू
धर्मभूमी कर्मभूमी वीरभूमी भारता ॥३॥

ताडनाग बल्ल-निल्ली नारन्यू नारायणा
अमरगान मोल भुतियों गीत रामायणा
पुण्यभूमी देवभूमी मोक्षभूमी भारता ॥४॥

४. एक एक पावल घालतना

 ४. एक एक पावल घालतना 

एक एक पावल घालतना
पावलांचेर मनां जुळताना ।। धृ ० ।।

भेदभाव विसरतना विसरुया मोठेपणा
पद म्हणुया चलतना पावलां तालार घालतना
पावलां तालार घालतना ।। १ ।।

तुजी विशालकाय दर्या म्हाका जाय
ल्हारांतली ताकद आनी वेग म्हाका जाय
खोलाय म्हाका जाय ।। २ ।।

एक आमची आवय बापूय हिमालय
चुकले जाल्यार पावल भावाचे हात धरून चलय
हळूहळू चलय ।। ३ ।।

५ . आसेतु हिमाचल अखंड भारत शोभत राहो ऐक्याने

५ . आसेतु हिमाचल अखंड भारत शोभत राहो ऐक्याने

आसेतु हिमाचल अखंड भारत शोभत राहो ऐक्याने 
मिळो प्रेरणा अखिल जगाला दिव्य विवेक विचाराने ॥ १ ॥

द्वेषभावना कुठेही नसो, धर्म पंथ हे विविध जरी 
ध्वज डौलाने फडकत राहो, समरसतेच्या रथावरी 
हस्तमलांची गुंफू माला बंधुत्वाच्या धाग्याने ॥ १ ॥ 

निरक्षरांसी सुज्ञ कराया, ज्ञानामृत ते देऊ चला 
निस्पृहतेने कार्य करोनी, सबल करु अवघ्या अबला 
धन्य करूया जीवन अपुले दीन जनांच्या सेवेने ॥ २ ॥ 

रामप्रभूचे श्रीकृष्णाचे चरित्र पावन मनी धरू 
शिवराया अन प्रतापराणा वंदन त्यांसी सदा करू 
हिंदुभूमिला समर्थ करण्या उभे राहूया शौर्याने ॥ ३ ॥                      

१. भारत वन्दे मातरम जय भारत

. भारत वन्दे मातरम जय भारत 

भारत वन्दे मातरम् जय भारत वन्दे मातरम्
रुकना पाये तूफानों में सबके आगे बढे कदम
जीवन पुष्प चढाने निकले माता के चरणों में हम ॥धृ॥

मस्तक पर हिमराज विराजित उन्नत माथा माता का
चरण धो रहा विशाल सागर देश यही सुन्दरता का
हरियाली साडी पहने माँ गीत तुम्हारे गाए हम ॥१॥

नदियन की पावन धारा है मंगल माला गंगा की
कमर बन्ध है विंध्याद्रि की सातपुरा की श्रेनी की
सह्याद्रि का वज्रहस्त है पौरुष को पहचाने हम ॥२॥

नही किसी के सामने हमने अपना शीश झुकाया है
जो हम से टकराने आया काल उसी का आया है
तेरा वैभव सदा रहे मा विजय ध्वजा फहराये हम ॥३॥                    

२ . भक्तिभावे श्री गुरुची, मी पूजा बांधियली

२ . भक्तिभावे श्री गुरुची, मी पूजा बांधियली

भक्तिभावे श्री गुरुची, मी पूजा बांधियली
जीवनाची पुष्पकमले, या ध्वजाला वाहिली ॥ध्रु॥

मानवाचा धर्म माझा, हीच माझी प्रेरणा
संत-मुनि-ऋषि येथ वदले, विश्व एकच भावना
राष्ट्रभक्तीने उभी ही, संघशक्ती आपुली ॥१॥

ईश्वराचे कार्य माझे, मग मला भय कोणते
याच कामी देह येवो, जीवना साफल्य ते
तृप्त होइल अंतरात्मा, जर पुजा स्वीकारली ॥२॥

त्यागमय तू पथ प्रदर्शक, शांतिचा अन् क्रांतिचा
स्फूर्ति देसी तुच सकला, मार्ग दावी प्रीतिचा
                                 प्रथम राष्ट्राच्या ध्वजाला, दक्षिणा अर्पीयली ॥३॥