Wednesday, September 24, 2025

१८९ शून्य से एक शतक बनते, अंक की मनभावना |

 १८९  शून्य से एक शतक बनते, अंक की मनभावना |


शून्य से एक शतक बनते, अंक की मनभावना |

भारती की जय विजय हो, ले हृदय में प्रेरणा |

कर रहे है हम साधना, मातृभू आराधना ||धृ०||


दैव ने भी राम प्रभु हित, लक्ष्य था ऐसा विचारा |

कंटकों के मार्ग चलकर, राम ने रावण संहारा |

ताकि निष्कंटक रहे, हर देव ऋषि की साधना ||१||


ध्येयहित को एक ऋषिने, देह को दीपक बनाया |

और तिल-तिल जल स्वयंने,कोटि दीपों को जलाया |

ध्येयपथ पर चल पडे, ले, उर विजय की कामना ||२||


विजीगिषा का भाव लेकर,देश में स्वातंत्र्य आया |

बनें समरस राष्ट्र भारत बोध यह दायित्व लाया |

छल,कपट और भेद से था, राष्ट्र जन को तारना ||३||


धर्म संस्कृति है सनातन, रखें जल वायू सुहावन |

पंक्ति में पीछे खडे का, उन्नयन हो नित्य भावन |

राष्ट्र का उत्थान साधन, विश्वमंगल कामना ||४||

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