१९० विराट राष्ट्रपुरूष के, संघ चरण चल रहे
संघ चरण चल रहे !
विराट राष्ट्रपुरूष के, संघ चरण चल रहे ,
विराट हिन्दु राष्ट्र के , संघ चरण बढ़ रहे ॥ ध्रु०॥
आदि मध्य अंत को देख ना सके कोई,
भय चकित रूप को ,देखते रहे सभी,
धर्म स्थापना के काज, सगुण रूप ले रहे ।
संघ चरण चल रहे ॥१॥
आत्म भाव जागरण , यह निदान रोग का,
साध्य और साधना, एक रूप ध्येय का,
विमुख ना हुए कभी, कार्य गुंथते रहे,
संघ चरण चल रहे ॥२॥
एक से अनेक का , मूल तत्व गूंजता,
सिंधु की समष्टि में, बिंदु की सरूपता,
रूप भिन्न भिन्न मात्र, आत्म रूप एक है,
संघ चरण चल रहे ॥३ ॥