Saturday, February 17, 2024

१८२ नदियां न पिये कभी अपना जल

नदियां न पिये कभी अपना जल,
वृक्ष न खाए कभी अपना फल 
अपने तन को मन को धन को
देश को दे दे दान रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ||धृ०||

चाहे मिले सोना चाँदी 
चाहे मिले रोटी बासी,
महल मिले बहु सुखकारी,
चाहे मिले कुटिया खाली
प्रेम और संतोष भाव से,
करता जो स्वीकार रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ||१||

चाहे करे निन्दा कोई 
चाहे कोई गुण गान करे,
फूलों से सत्कार करे
काँटों की चिन्ता न धरे
मान और अपमान ही दोनों
जिसके लिये समान रे
वो सच्चा इन्सान रे, वो सच्चा इन्सान ||२||