१८१. कोटि कोटि हिंदू मिलकर, श्रीराम-नाम गुंजाते हैं
कोटि कोटि हिंदू मिलकर, श्रीराम-नाम गुंजाते हैं
सौगंध कभी जो खायी थी, वह पूर्ण किए हम जाते है
हम मंदिर वही बनाते हैं || धृ ० ||
हर अंतर में श्रीराम-सिया, है लखन-भरत आचारों में
बल भक्ती का है संग लिए, हनुमान बसे घर-द्वारों में
श्रीरामकथा का घोष सदा, गूँजे आँगन-गलियारों में
यह पुण्यधरोहर अमृत सी, छलके हर घर-परिवारों में
हर गाँव अयोध्या सा बनकर, जन जन में राम समाते हैं ||१ ||
आक्रांता ने जो भ्रष्ट किया, वह क्षेत्र होत अब पावन है
सदियों से जो बलिदान हुए, सब होत चले चिरसार्थक है
फिर हिंदुशक्ति है जाग उठी, दानव बैठे अब डरकर है
आए तैमुर-बाबर कोई, हम सिद्ध कमान उठाकर है
मंदिर राघव का रचकर हम, आदर्श वही दोहराते हैं ||२ ||